🌸🙏॥सत्यनाम॥🙏🌸
.............."चेतावनी"............
काल चक्र चक्की चलै,
बहुत दिवस औ रात ॥
सगुन अगुन दोय पाटला,
तामें जिव पिसात ॥
राम भजो तो अब भजो,
बहुरि भजोगे कब ॥
हरिया हरिया रूखड़े,
ईधन हो गये सब ॥
भावार्थः-
👉सतगुरु कबीर साहेब भन्नु हुन्छ कि हे धर्मदास ! यो संसार मा निर्गुण र सर्गुण रूपी दुई पाटा वाला काल चक्र को झांतोमा धेरै नै तिब्र गतीमा दिन रात घुमी रहेको छ, अनी त्यसैमा गुरु सतसंग विमुख अज्ञानी जीव सबै पिसी रहेको छ ।
👉सतगुरू कबीर साहेब भन्नु हुन्छ कि यदि जीव त्यो काल चक्र बाट बाचन चाहन्छन् भने सतगुरु को शरण मा स्वयम आफैले आफै लाई समर्पित गरेर सदैव सत्य नाम को सुमिरन गर्नु पर्छ यही नै सार हो, किन कि यो मानव शरीर दोबारा पाउने वाला छैन, हरीयो भरीयो बृक्ष पनी त एक दिन सुकेर कोईला हुनेछ ।
भय बिनु भाव न उपजै,
भय बिनु होय न प्रीत ॥जब हृदय से भय गया,
मिटैं सकल रसरीत ॥
भय से भक्ति करैं सबै,
भय से पूजा होय ॥
भय पारस है जीव को,
निर्भय होय न कोय ॥
👉सतगुरू कबीर साहेब भन्नु हुन्छ कि हे धर्मदास ! बिना डर को श्रद्धा र प्रेम हॅुदैन ! किन कि हृदय मा डर न रहेमा सुमिरन, भजन अनी गुरु शिष्य को मर्यादा रहदैन ।
डर देखी नै भक्ति र पूजा सबै गर्दछन्, किन कि फलाम रूपी जीव लाई सुन बनाउनुमा भय रूपी पारस हुन जरूरी छ ! डर नभै कन केही पनी हॅुदैन ॥
सप्रेम साहेब बंदगी साहेब हजुर🙏
*"अधिकांश मनुष्य बहुत लापरवाह हैं। इस दोष के कारण वे अपनी मूल्यवान वस्तुओं की सुरक्षा नहीं करते, और फिर जीवन के अंत में पछताते हैं।"*
ऐसे तो बहुत सी वस्तुएं मूल्यवान हैं। जैसे कि धन संपत्ति सोना चांदी मकान मोटर गाड़ी इत्यादि। सबका अपना अपना मूल्य है। सबकी सुरक्षा करनी चाहिए। *"परंतु इन वस्तुओं के मूल्य में अंतर भी है। कोई वस्तु कम मूल्यवान है, तो कोई वस्तु अधिक मूल्यवान है।"*
इसी प्रकार से व्यक्ति का अपना *"स्वास्थ्य और समय"* यह दो वस्तुएं भी बहुत मूल्यवान हैं। भौतिक वस्तुओं की तुलना में इन दोनों का मूल्य बहुत अधिक है। परन्तु अधिकतर लोग ऐसे देखे जाते हैं, जो धन संपत्ति सोना चांदी मोटर गाड़ी आदि वस्तुओं का मूल्य तो फिर भी समझते हैं। कुछ इनकी सुरक्षा भी करते हैं। *"फिर भी अपने 'स्वास्थ्य और समय' की सुरक्षा पर बहुत कम ध्यान देते हैं।" "उतना ध्यान नहीं देते, जितना कि देना चाहिए। यूं ही लापरवाही से स्वास्थ्य का नाश करते हैं। समय का नाश करते हैं।"*
एक व्यक्ति तला भुना मैदे वाला भोजन (फास्ट फूड) लंबे समय तक खाता रहा। फल फूल शाक सब्जियां बहुत कम मात्रा में खाईं। लंबे समय तक मैदा से बनी हुई तली भुनी चीजें चाट पकौड़ी कचौड़ी समोसे आदि खाने के कारण वह रोगी हो गया। उसका रोग कुछ अधिक बढ़ गया। परिणाम यह हुआ कि उसे चिकित्सालय में भर्ती होना पड़ा। फिर उसके कुछ मित्र लोग चिकित्सालय में उससे मिलने आए, और उसके लिए संतरा मौसमी नींबू आदि आदि फल लेकर आए। अब वह स्वास्थ्य ठीक करने के लिए चिकित्सालय में बिस्तर पर पड़ा पड़ा, संतरा मौसमी नींबू आदि का सेवन करता रहता है। परंतु जो उसके मित्र लोग उसके लिए संतरा मौसमी आदि लाए थे, वही लोग चिकित्सालय के बाहर जाकर मैदा से बनी वही तली हुई चीजें चाट पकौड़ी कचौड़ी समोसे आदि खाने लगे। कुछ दिनों बाद ये लोग भी ऐसे ही रोगी होंगे, और इस रोगी के समान ये भी चिकित्सालय में भर्ती होंगे। और बस यही चक्र आगे भी चलता रहेगा।
इस प्रकार से मनुष्य लंबे समय तक अपने स्वास्थ्य की परवाह नहीं करता। *"धीरे-धीरे अनेक रोग उसके शरीर में जड़ जमा लेते हैं, और जीवन भर उसका पीछा नहीं छोड़ते। तब वह दीर्घरोगी हो जाता है।"* जब ऐसी स्थिति आती है, तब व्यक्ति को पता होता है, कि *"मैंने अपने स्वास्थ्य का ध्यान पहले से नहीं रखा, जिस कारण से मैं ऐसा रोगी हो गया। यदि मैंने स्वास्थ्य का ध्यान पहले से रखा होता, तो आज मैं इस प्रकार से रोगी दुखी परेशान नहीं होता।"*
यही बात 'समय' के सम्बन्ध में भी है। *"बचपन में व्यक्ति खेलकूद में अपना समय नष्ट करता रहता है। जवानी में पैसे कमाने इधर-उधर घूमने और भोग विलास में अपना समय और शक्ति नष्ट करता है। अनेक प्रकार के शौक पाल लेता है, और उन्हें पूरा करने के लिए अपना मूल्यवान समय नष्ट करता रहता है। फिर बुढ़ापे में समझ आती है, कि मैंने सारा समय फालतू के कामों में खो दिया। कुछ धर्म अध्यात्म के विषय में नहीं सीखा। न कोई पुण्य कमाया। अब मुझे बुढ़ापे में समझ आई है, कि कुछ धर्म कर्म भी करना चाहिए था। कुछ वेदादि शास्त्रों का स्वाध्याय अध्ययन सेवा परोपकार आदि भी करना चाहिए था।"*
*"अब मैं इन सब कार्यों को करना चाहता हूं। परन्तु अब मेरे शरीर में उतनी शक्ति नहीं रही। मेरा स्वास्थ्य उतना अच्छा नहीं है। मैं ठीक से बैठ नहीं पाता। ईश्वर का ध्यान नहीं कर पाता। वेदों और ऋषियों के ग्रंथों की पढ़ाई लिखाई नहीं कर पाता। आंखें कमजोर हो गई हैं। कानों से भी कम सुनाई देता है। सत्संग में जाता हूं, वहां भी ठीक से बातें समझ में नहीं आती। अब मुझे जीने का ढंग समझ में आया है। अब मैं जीना चाहता हूं। पर मेरे साधन =स्वास्थ्य और समय, सब समाप्त से हो चुके हैं। अब मैं क्या करूं!"* बस यही पश्चाताप लेकर अंत में मनुष्य, अपनी पुनर्जन्म की यात्रा पर चल देता है।
*"बन्धुओ! समय रहते सावधान हो जाएं। अपने "स्वास्थ्य और समय" की सुरक्षा करें। बचपन से ही ऊपर बताए वेदादि शास्त्रों का स्वाध्याय अध्ययन, ईश्वर का ध्यान, सेवा परोपकार आदि उत्तम कार्यों का आचरण करें। ताकि जीवन के अंत में पछताना न पड़े।"*